उत्तर प्रदेश में आज से शुरू हुआ विशेष तीव्र संशोधन (SIR) अभियान — एक ऐसा प्रक्रिया जो अगले साल के विधानसभा चुनाव के लिए जनता की आवाज़ को दर्ज करने का नया तरीका है। ट्रकों से लेकर पैदल चलने वाले बूथ स्तरीय अधिकारी (BLOs) आज से घर-घर जाकर मतदाताओं की जांच कर रहे हैं। 1.62 लाख BLOs ने नवंबर 4, 2025 को इस अभियान की शुरुआत की, जो भारत भर के 51 करोड़ मतदाताओं की सूची को अपडेट करने के लिए चुनाव आयोग ऑफ इंडिया (ECI) के निर्देश के तहत किया जा रहा है। ये अभियान सिर्फ एक तकनीकी काम नहीं — ये राजनीति का एक नया मैदान बन गया है।

क्यों इतना तनाव?

बिहार में पिछले SIR अभियान में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए थे — कुछ ने इसे वोट चोरी कहा, कुछ ने इसे आधिकारिक नियंत्रण बताया। उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं होने देने के लिए ECI ने नए नियम बनाए: अब आधार कार्ड काफी है, जन्म प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं। हर बूथ पर अधिकतम 1,200 मतदाता रखे जाएंगे — पहले 1,500-2,000 थे। ये छोटा सा बदलाव बड़ा असर डालेगा: जब वोटिंग दिन आएगा, तो लोग आसानी से पहचाने जा सकेंगे, लंबी लाइनें कम होंगी।

राजनीतिक युद्ध का नया मंच

भाजपा ने अपने सभी लोकसभा सांसदों, विधानसभा सांसदों और 2022 के हारे उम्मीदवारों को बूथ-स्तर पर वॉर रूम बनाने के लिए भेज दिया है। हर पांच दिन में उन्हें बूथ के काम की समीक्षा करनी है। इसी बीच, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 23 नवंबर को ECI से तीन महीने की बढ़ोत्तरी की मांग की। वे कह रहे हैं: "अगर इस समय नाम हटाए गए, तो आम आदमी का वोट छीन लिया जाएगा।"

बीएसपी ने अपने सेक्टर अध्यक्षों को 11-सदस्यीय टीमों के साथ बूथ पर निगरानी के लिए भेजा है। कांग्रेस, जो भाजपा को "वोट-चोरी" का आरोप लगा रहा है, उसकी बूथ-स्तरीय टीमें अधूरी हैं। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष हिंदवी ने स्वीकार किया: "हमारी संगठनात्मक कमजोरी के कारण हम इस अभियान में पीछे हैं।"

केरल का आंदोलन और एक BLO की मौत

केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से SIR को रोकने की अपील की है — क्योंकि ये नगर पालिका चुनावों के साथ टकरा रहा है। एक दुखद घटना ने इस आंदोलन को और गहरा कर दिया: केरल के एक BLO ने आत्महत्या कर ली। उनके परिवार का दावा है कि SIR के दबाव ने उन्हें जीवन से निराश कर दिया। ये घटना अब एक राष्ट्रीय चिंता बन गई है।

कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), इस्लामी लीग और तृणमूल कांग्रेस भी इस अभियान के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। तृणमूल के प्रवक्ता कुनाल घोष ने सावधान किया: "अगर किसी का नाम हटाया गया, तो वो उनके लिए बुरा होगा।" ये बात सिर्फ राजनीति नहीं — ये जनता के विश्वास के बारे में है।

योगी का संकेत: अवैध प्रवासियों की तलाश

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिला मजिस्ट्रेट्स को निर्देश दिया है: "तुरंत अवैध प्रवासियों की पहचान करें।" ये बयान एक नए तरीके से जुड़ा है — क्या SIR सिर्फ मतदाता सूची सुधारने के लिए है, या ये एक आप्रवासन नियंत्रण के लिए भी इस्तेमाल हो रहा है? ये सवाल अभी तक जवाब का इंतजार कर रहा है।

अगले चरण: क्या होगा अगले तीन महीने में?

12 दिसंबर, 2025 तक एनुमरेशन चलेगा। फिर 9 दिसंबर को ड्राफ्ट सूची जारी होगी — इस पर 31 जनवरी, 2026 तक आप अपना दावा या आपत्ति दर्ज कर सकते हैं। ये तीन महीने असली लड़ाई होंगे। जो लोग अपना नाम नहीं ढूंढ पाएंगे, उनके लिए अगले चरण में एक बड़ा रास्ता बंद हो जाएगा।

फरवरी 7, 2026 को अंतिम सूची जारी होगी। और फिर — अगले साल जनवरी में चुनाव घोषित होंगे। ये नहीं कि आपका नाम सूची में है — ये यही है कि आपका नाम गलत नहीं है। एक गलती आपके वोट को अमान्य बना सकती है।

जनता का विश्वास कैसे बचाया जाए?

एक अधिकारी ने बताया: "हमने 100% एनुमरेशन फॉर्म छाप दिए हैं। लेकिन अगर कोई आदमी अपना नाम नहीं ढूंढ पाता, तो वो ये सोचता है कि उसका वोट नहीं होगा।" ये डर असली है। आपके नाम का होना आपके अस्तित्व का प्रमाण है। और अगर आपका अस्तित्व अधिकारियों के डेटा में गायब हो गया, तो आपकी आवाज़ भी गायब हो जाएगी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

SIR अभियान क्यों इतना महत्वपूर्ण है?

SIR अभियान 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची को सही और अपडेटेड बनाने का अंतिम मौका है। इसके बिना, नए मतदाताओं को वोट देने का अधिकार नहीं मिलेगा, और पुराने नाम जो मर चुके हैं या बदल गए हैं, वो बने रहेंगे। ये सूची चुनाव की न्यायपालिका है — इसकी भरोसेमंदी ही लोकतंत्र की भरोसेमंदी है।

मैं अपना नाम कैसे चेक कर सकता हूँ?

आप https://voters.eci.gov.in/ पर जाकर अपना नाम, पिता का नाम और बूथ नंबर डालकर अपनी सूची की जांच कर सकते हैं। यहां आपको तीन चीजें दिखेंगी: आपका नाम, आपका बूथ, और आपका वोटिंग स्थान। अगर कुछ गलत है, तो ड्राफ्ट सूची जारी होने के बाद आप आपत्ति दर्ज कर सकते हैं।

भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच क्या अंतर है?

भाजपा ने अपने सभी एमपी, एमएलए और हारे उम्मीदवारों को बूथ-स्तर पर नियुक्त किया है, जबकि समाजवादी पार्टी ने अपने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फ्रेमवर्क के तहत 11-सदस्यीय टीमें बनाई हैं। भाजपा की टीमें अधिक संख्या में हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी की टीमें अधिक रास्ते की जानकारी रखती हैं। दोनों अपने आधार को अलग तरीके से बना रहे हैं।

क्या आधार कार्ड काफी है, या अन्य दस्तावेज भी चाहिए?

अब आधार कार्ड काफी है — जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट या राशन कार्ड की जरूरत नहीं है। ये बिहार के अनुभव से सीखा गया है, जहां जटिल दस्तावेजों की वजह से लाखों लोगों के नाम हटा दिए गए थे। चुनाव आयोग ने इस गलती को सुधारने की कोशिश की है।

कांग्रेस क्यों पीछे है?

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बूथ स्तरीय संगठन को नजरअंदाज कर दिया है। इसकी वजह से उनके अधिकारियों की संख्या बहुत कम है — केवल 1.2 लाख बीएलए नाम दिए गए हैं, जबकि भाजपा ने 2.1 लाख नाम दिए हैं। ये संगठनात्मक कमजोरी उन्हें अभियान में बाहर धकेल रही है, भले ही वे भाजपा पर आरोप लगा रहे हों।

क्या ये अभियान वोट चोरी के लिए इस्तेमाल हो रहा है?

कोई साबित नहीं हुआ है, लेकिन बहुत सारे संकेत हैं। जब एक राज्य में अवैध प्रवासियों की तलाश की जा रही है, और एक अधिकारी की आत्महत्या हो गई है, तो लोग डरते हैं। ये अभियान न्यायपालिका का हिस्सा होना चाहिए — न कि राजनीतिक अस्त्र का।

रेहाना चतुर्वेदी

मैं एक पत्रकार हूं और मुझे भारत के दैनिक समाचारों पर लेख लिखना पसंद है। मेरा काम मेरी लेखनी के माध्यम से लोगों को सटीक और समसामयिक जानकारी प्रदान करना है। मैं हमेशा नयापन और स्पष्टता की ओर अपने पाठकों को आकर्षित करने का प्रयास करती हूं। लेखन के साथ मेरा प्रेम मुझे गहराई और अंतर्दृष्टि देने में मदद करता है। मेरा उद्देश्य है कि मैं लोगों को सूचित और जागरूक कर सकूं।