रिपोर्ट: रेहाना
सोशल मीडिया पर एक चुभता हुआ दावा घूम रहा है—मुस्कान रस्तोगी ने पति सौरभ राजपूत की हत्या के बाद डांस किया। गुस्सा भड़काने वाले ऐसे दावों से शेयर बटन तेज चलता है, पर सच्चाई धीमे चलती है। उपलब्ध खोज परिणामों और सार्वजनिक रिपोर्ट्स में फिलहाल उस कथित डांस वीडियो का कोई ठोस सबूत नहीं दिखा। जो खबरें हैं, वे मेरठ में मर्चेंट नेवी अधिकारी सौरभ राजपूत की हत्या और उसमें मुस्कान रस्तोगी व साहिल शुक्ला के नामों के आने तक सीमित हैं।
दावा क्या है, और केस का संदर्भ
दावा यह कहता है कि हत्या के तुरंत बाद मुस्कान रस्तोगी का “डांस वीडियो” वायरल हुआ। लेकिन जितनी रिपोर्ट्स अभी तक सामने हैं, वे हत्या की जांच, संदिग्धों की भूमिका और पुलिस की कार्रवाई पर केंद्रित हैं—डांस वाले वीडियो पर नहीं।
पृष्ठभूमि समझ लें। मीडिया कवरेज के मुताबिक मामला मेरठ का है, जहां मर्चेंट नेवी से जुड़े सौरभ राजपूत की हत्या की जांच में मुस्कान रस्तोगी और साहिल शुक्ला के नाम सामने आए हैं। जांच जारी है, और कई सवालों के जवाब पुलिस ही देगी। ऐसे माहौल में बिना सत्यापन किसी भी वीडियो को “सबूत” बता देना गलत दिशा में ले जा सकता है।
तथ्य-जांच: क्या मिला, क्या नहीं
यह फैक्ट चेक करते समय हमें तीन बातें साफ दिखीं।
- उपलब्ध खोज परिणामों में कहीं भी उस डांस वीडियो की विश्वसनीय पुष्टि, पुलिस का संदर्भ, या मान्य मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली।
- जो लिंक मिले, वे हत्या की जांच और संदिग्धों से जुड़ी खबरें थीं—कथित डांस क्लिप का उल्लेख नहीं था।
- वायरल क्लिप्स अक्सर पुराने या असंबंधित वीडियो को नए दावे की पैकिंग में पेश करती हैं। कैप्शन बदलते ही संदर्भ बदल जाता है।
अब काम की बात—आप कैसे पहचानेंगे कि ऐसा कोई वीडियो असली है या घालमेल?
- वीडियो स्रोत: क्या यह किसी भरोसेमंद न्यूज हैंडल, पुलिस की आधिकारिक ब्रीफिंग, या प्रेस कॉन्फ्रेंस से आया है? अगर नहीं, संदेह रखें।
- तारीख-समय: क्लिप कब शूट हुआ? अक्सर पुराने शॉर्ट्स को नए दावों के साथ चिपका दिया जाता है।
- स्थान-संकेत: बैकग्राउंड बोर्ड, बोली, गाड़ियां, मौसम—क्या वे दावे वाली जगह/समय से मेल खाते हैं?
- ऑडियो-वीडियो मैच: क्या होंठों की मूवमेंट और आवाज सिंक में हैं? कई फेक क्लिप्स में डबिंग होती है।
- फ्रेम-ग्रैब टेस्ट: वीडियो के कुछ फ्रेम निकालकर रिवर्स इमेज सर्च करें। अगर वही क्लिप अलग संदर्भ में पहले मौजूद है, दावा कमजोर पड़ता है।
कानूनी पक्ष भी समझें। किसी चलती जांच के दौरान भ्रामक सामग्री फैलाना न केवल जांच को प्रभावित करता है, बल्कि मानहानि और अफवाह फैलाने से जुड़ी धाराओं के जोखिम भी पैदा करता है। प्लेटफॉर्म गाइडलाइंस के हिसाब से भी गलत संदर्भ में हिंसक/उकसाने वाले वीडियो शेयर करना उल्लंघन माना जाता है।
क्यों ऐसे दावे तेजी से फैलते हैं? एल्गोरिद्म गुस्से और सनसनी को ऊपर धकेलते हैं, और हमारी पुष्टि पूर्वाग्रह (जो मानना है, वही ढूंढना) इसे और तेज करता है। क्राइम स्टोरीज में “पोस्ट-क्राइम डांस” जैसा तत्व भावनात्मक ट्रिगर बन जाता है—पर यही जगह है जहां थमकर सोचना चाहिए: क्या कोई विश्वसनीय पुष्टिकरण है?
फिलहाल तस्वीर यही है—मेरठ मर्डर केस की जांच जारी है; उपलब्ध रिपोर्ट्स में कथित डांस वीडियो का प्रमाण नहीं मिलता। अगर ऐसा कोई आधिकारिक पुष्टिकरण या विश्वसनीय रिपोर्ट सामने आती है, तो कहानी बदल सकती है। तब तक, वायरल दावों को “संभावित भ्रामक” की तरह ट्रीट करें।
आप क्या करें? शेयर करने से पहले दो स्टेप लें—(1) मूल स्रोत देखें, (2) दूसरे भरोसेमंद समाचार संस्थानों में क्रॉस-चेक करें। अगर दोनों जगह खामोशी है, तो बेहतर है कि उंगली शेयर बटन से दूर रखें।