नवंबर 13, 2023 को मेदिनीपुर सदर ब्लॉक विकास अधिकारी (BDO) कार्यालय में एक अजीब सी चुप्पी छाई रही — न तो गुस्से की चिल्लाहट, न ही झगड़े की आवाज़, बल्कि थकान की गहरी सांसें। लगभग दो दर्जन बूथ लेवल ऑफिसर (BLOs), जो ज्यादातर सरकारी स्कूलों के शिक्षक हैं, ने अपने हाथों में एक कागज़ थामा: एक याचिका, जिसमें लिखा था — 'हम नहीं कर पाएंगे।' ये कागज़ न सिर्फ एक शिकायत था, बल्कि एक चिल्लाहट थी, जो आम आदमी के जीवन के अंदर छिपी हुई थी।
क्यों टूट रहे हैं BLOs?
मेदिनीपुर के BLOs ने निर्वाचन आयोग के विशेष तीव्र संशोधन (SIR) पश्चिम मेदिनीपुर अभियान के तहत डेटा एंट्री का भार झेलने से इनकार कर दिया। हर BLO के पास 1,200 से अधिक मतदाताओं की जानकारी अपडेट करनी है — नाम, आयु, पता, लिंग, निर्वाचन क्षेत्र — सब कुछ डिजिटली दर्ज करना है। लेकिन ये सब उनके स्कूल के दिन के बाद, घर के कामों के बाद, बच्चों की पढ़ाई के बाद। एक BLO ने कहा, 'हमारा परिवार तो बिखर गया है। बच्चे रोते हैं, बीमार पड़ जाते हैं — और हम डेटा एंट्री कर रहे हैं।' ये कोई बात नहीं, ये जीवन का टूटना है।
आयोग की डेडलाइन, लोगों की जिंदगी
निर्वाचन आयोग ने 28 अक्टूबर को विशेष तीव्र संशोधन (SIR) पश्चिम बंगाल सहित 13 राज्यों में शुरू किया। इसका लक्ष्य है 7.6 करोड़ मतदाताओं की सूची को साफ़ करना — नाम जो गायब हो गए, जो जिंदा हैं लेकिन मर चुके हैं, जो एक जगह से दूसरी जगह चले गए। लेकिन इसके लिए डेडलाइन भी बहुत कठोर है: 9 दिसंबर तक ड्राफ्ट सूची, 8 जनवरी तक आपत्तियों का निपटारा, और 7 फरवरी तक अंतिम सूची। ये टाइमलाइन एक युद्ध की तरह है — जहां BLOs बच्चों के साथ खेलने के बजाय कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे हैं।
BDO का जवाब: 'हम देख रहे हैं'
मेदिनीपुर के BDO काहेकाशन परवीन ने याचिका स्वीकार कर ली। उन्होंने कहा, 'उनकी कुछ मांगें थीं। हमने उच्च अधिकारियों को सूचित कर दिया है। सहायक BLOs देने के मुद्दे पर हम गंभीरता से विचार कर रहे हैं।' लेकिन ये बातें अब तक बस बातें रह गईं। कोई निर्देश नहीं, कोई नियुक्ति नहीं। जबकि एक अनुमान के अनुसार, एक BLO को रोज़ 8-10 घंटे डेटा एंट्री के लिए देना पड़ रहा है — जबकि उनकी नौकरी का घंटा 6 घंटे है।
पूरे बंगाल में फैल रहा है विरोध
मेदिनीपुर की घटना अकेली नहीं है। पश्चिम बंगाल के कई जिलों में BLOs ने अपने आप को बचाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ने की धमकी दी है। कुछ शिक्षकों ने बस इतना कहा — 'हम नहीं आएंगे।' अब यहां एक नया डर भी जुड़ गया है: राजनीतिक धमकियां। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कई BLOs ने सुरक्षा की मांग की है — विशेषकर जहां चुनावी राजनीति तीव्र है। एक BLO ने कहा, 'हमें अपने घर के बाहर नहीं जाना चाहिए। कोई बोल रहा है — तुमने नाम हटाया, तो तुम्हारा बेटा अगले साल परीक्षा नहीं दे पाएगा।' ये डर किसी अधिकारी के लिए नहीं, एक शिक्षक के लिए है।
राज्यों में राजनीतिक तूफान
बिहार में 8 नवंबर को विपक्षी नेताओं ने SIR के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री M.K. स्टालिन ने इसे 'राजनीतिक हथियार' बताया — बिल्कुल वैसे ही जैसे ED और CBI को बताया जाता है। उन्होंने अपने पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम (DMK) को अदालत में इसके खिलाफ याचिका दायर करने का आदेश दिया। उन्होंने यह भी कहा कि एआईएडीएमके (AIADMK) के नेता एडप्पाडी के. पालनीस्वामी ने भी इस मामले में शामिल होने के लिए अदालत से अनुरोध किया है।
क्या कानून के खिलाफ है SIR?
यहां एक बड़ा सवाल है — क्या SIR कानूनी रूप से मान्य है? निर्वाचन आयोग के अपने निर्देशों में यह लिखा है कि राज्य के चुनाव पंजीकरण अधिकारी को हर सप्ताह राजनीतिक दलों को दावे और आपत्तियों की सूची व्यक्तिगत रूप से देनी होगी। लेकिन SIR के तहत ये प्रक्रिया बिल्कुल उलट हो गई है — अब आम नागरिकों को अपने नाम बदलने के लिए जानकारी देनी है, और उनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। कई विधि विशेषज्ञ और चुनाव सुधार कार्यकर्ता अदालत में याचिका दायर कर चुके हैं, जिसमें यह आरोप है कि SIR निर्वाचन आयोग के नियम 25(1) के तहत अवैध है।
अगला कदम क्या है?
अगर BLOs को सहायक नहीं मिले, तो डेटा एंट्री का काम टाला जाएगा — जिसका मतलब है अंतिम सूची की तारीख टालना। और अगर अंतिम सूची देर से आती है, तो अगले चुनाव की तैयारी भी उलट-पुलट हो जाएगी। ये सिर्फ एक डेटा का मामला नहीं, ये एक लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे का मामला है। अगर शिक्षक बूथ लेवल ऑफिसर बन गए, तो उन्हें शिक्षक का काम भी देना चाहिए। अगर नहीं, तो ये अभियान न तो साफ़ होगा, न ही न्यायसंगत।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
SIR अभियान क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
SIR यानी विशेष तीव्र संशोधन, निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू किया गया एक अभियान है जिसका उद्देश्य भारत की मतदाता सूची को साफ़ करना है। इसमें गायब, मर चुके, या बहुत बार बदले हुए पतों वाले मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं, और नए मतदाताओं को जोड़ा जा रहा है। इसका लक्ष्य 7.6 करोड़ मतदाताओं की सूची को अपडेट करना है, जिससे चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बने।
BLOs को सहायक क्यों नहीं दिए जा रहे हैं?
निर्वाचन आयोग के निर्देशों में सहायक BLOs की नियुक्ति के लिए कोई स्पष्ट मानदंड नहीं है। हालांकि BDOs ने माना है कि 1,200 से अधिक मतदाताओं वाले क्षेत्रों में सहायक देना जरूरी है। लेकिन अब तक कोई निर्देश जारी नहीं हुआ। बजट की कमी और प्रशासनिक देरी के कारण ये निर्णय टाला जा रहा है, जिससे शिक्षक BLOs को अकेले भार उठाना पड़ रहा है।
क्या SIR अभियान राजनीतिक रूप से लाभ के लिए इस्तेमाल हो रहा है?
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री M.K. स्टालिन और बिहार के विपक्षी नेता इसे राजनीतिक हथियार बता रहे हैं। उनका तर्क है कि जिन इलाकों में विपक्षी दल मजबूत हैं, वहां अधिक नाम हटाए जा रहे हैं। इसकी जांच के लिए अभी तक कोई स्वतंत्र निगरानी नहीं है। DMK ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई अभी तक नहीं हुई।
SIR के लिए डेटा एंट्री का भार क्यों शिक्षकों पर पड़ रहा है?
शिक्षकों को BLO बनाने का कारण यह है कि वे स्थानीय स्तर पर पहचाने जाते हैं और घर-घर जाने का काम कर सकते हैं। लेकिन उन्हें डेटा एंट्री का डिजिटल काम दिया गया है — जो उनकी तकनीकी योग्यता से परे है। अधिकांश शिक्षकों को कंप्यूटर का बुनियादी ज्ञान भी नहीं है, लेकिन उन्हें एक दिन में 100+ फॉर्म भरने का दबाव दिया जा रहा है।
अगर BLOs ने काम नहीं किया, तो चुनाव प्रक्रिया कैसे प्रभावित होगी?
अगर BLOs डेटा एंट्री नहीं कर पाएंगे, तो अंतिम मतदाता सूची देर से आएगी, जिसका मतलब है कि नए मतदाताओं को वोटिंग कार्ड नहीं मिलेंगे, और जिनके नाम गलत हैं, वे वोट नहीं दे पाएंगे। इससे वोटर अप्रत्याशित रूप से अयोग्य हो सकते हैं। यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है — जब आम आदमी का अधिकार तकनीकी भूलों और भार के कारण खत्म हो रहा हो।
क्या निर्वाचन आयोग ने कभी इस तरह का अभियान पहले किया है?
हां, SIR पहले बिहार में 2022 में लागू किया गया था, लेकिन उस बार डेटा एंट्री के लिए स्थानीय कर्मचारियों को नौकरी पर रखा गया था। इस बार आयोग ने शिक्षकों को इसके लिए उपयोग किया है, जिससे उनके जीवन पर भारी प्रभाव पड़ रहा है। यह एक नया और खतरनाक ट्रेंड है — जहां नागरिकों को राज्य के अपने काम का बोझ उठाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।